Thursday, June 21, 2018

सजल

सुख कल्पित हैं, आशा में भरमाते हैं
दुख सच्चे साथी हैं, आते-जाते हैं

नश्वर जग में सार नहीं मिल पाता है
हरदम उलझी गुत्थी को सुलझाते हैं

रोटी, कपड़ा, छत का उसका सपना है
मतलबखोर उसे अक्सर बहलाते हैं

जान सत्य को वो तो मौन साध बैठे
पागल ही अब पागल को समझाते हैं

दंश दिए हैं उसने, कमी नहीं छोड़ी
फिर भी वे हमको अपना बतलाते हैं

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