भारत भू पर मरने वालो
तुमको है यह गान समर्पित.
और मूल्य की वस्तु नहीं कुछ
जीवन का अभियान समर्पित.
भारत भू की रक्षा के हित
तुमने सबकुछ लुटा दिया था.
झेले कष्ट हटे ना पीछे
झुका न मस्तक कटा दिया था.
इक स्वतंत्र भारत का मन में
स्वप्न सजाकर चले गए तुम.
चेहरे पर मुस्कान हृदय में
आंसू भरकर चले गए तुम.
कितनी नववधुओं का कुमकुम
भेंट चढ़ा है आजादी को.
कितनी माताओं की गोदें
सिसकीं अपनी बरवादी को.
ना वे बिलखीं, ना वे रोईं
निज होठों को भींच लिया था.
उन तपस्विनी की आंखों ने
आंसू वापस खींच लिया था.
मन में था यह भाव सभी के
देश न अपना आरत होगा.
बलिदानों की नींव के ऊपर
सुन्दर, स्वप्निल भारत होगा.
किन्तु सुखद भारत का सपना
चूर हुआ तब गद्दारी से.
लाखों मारे गये बचा नहिं
देश मजहब की बीमारी से.
जिन को भारत की बसुधा ने
सदियों सीने पर झेला था.
अंत समय पर उन दुष्टों ने
खेल विभाजन का खेला था.
भारत भू पर मरने वालों
का हर सपना चूर हो रहा.
राष्ट्र-धर्म की मर्यादा से
भारत वासी दूर हो रहा.
जो पहले गोरे करते थे,
वह सब अब काले करते है.
जनशोषण पहले से बढ़कर
अब कुर्ते वाले करते हैं.
जंगल में गुण्डे रहते थे
सभी अनुभवी यह कहते हैं.
अब विकसित हो रहे देश में
गुण्डे बर्दी में रहते हैं.
झांसी की रानी का जीवन
चला गया गोली कटार में.
भीड़ युवतियों की मिलती अब
फिल्मदर्शकों की कतार में.
साठ बर्ष में दस सदियों के
कष्ट सभी अब भूल गये है.
उन्हें नहीं यह भान राष्ट्रहित
कितने फांसी झूल गये हैं.
भगतसिंह, शेखर, सुभाष का
मन में भाव नहीं रहता है.
आज युवा की वृत्ति देखिये
फिल्मों में जीता मरता है.
देवालय से बढ़कर ‘वीरो’
आज खुल रही हैं मधुशाला.
बच्चे बिना दूध के तरसें
बाप पिये मदिरा का प्याला.
जिस बेटी को लक्ष्मी कहते
जन्म पूर्व मरवा देते हैं.
और अधिक लक्ष्मी पाने को
जीवित ही जलवा देते हैं.
क्या ऐसे भारत की खातिर
ही खुद को बलिदान किया था.
क्या पीड़ा ना होती मन में
क्यों अपना सर दान दिया था.
बलिदानों की वृहत श्रँृखला
पर जो आजादी पाई है.
उसे संभालो अंतरतम से
खुद गुलामी की खाई है.
स्वतंत्रता से उच्छृंखल हो
जो तुम मन ही मन ऐंठोगे.
नहीं यहां कोई स्थिरता
इसे शीघ्र ही दे बैठोगे.
राष्ट्र-धर्म के सभी कार्य में
बढ़कर आगे आना होगा.
गिद्ध दृष्टि जो लगी देश पर
उससे देश बचाना होगा.
तुमको है यह गान समर्पित.
और मूल्य की वस्तु नहीं कुछ
जीवन का अभियान समर्पित.
भारत भू की रक्षा के हित
तुमने सबकुछ लुटा दिया था.
झेले कष्ट हटे ना पीछे
झुका न मस्तक कटा दिया था.
इक स्वतंत्र भारत का मन में
स्वप्न सजाकर चले गए तुम.
चेहरे पर मुस्कान हृदय में
आंसू भरकर चले गए तुम.
कितनी नववधुओं का कुमकुम
भेंट चढ़ा है आजादी को.
कितनी माताओं की गोदें
सिसकीं अपनी बरवादी को.
ना वे बिलखीं, ना वे रोईं
निज होठों को भींच लिया था.
उन तपस्विनी की आंखों ने
आंसू वापस खींच लिया था.
मन में था यह भाव सभी के
देश न अपना आरत होगा.
बलिदानों की नींव के ऊपर
सुन्दर, स्वप्निल भारत होगा.
किन्तु सुखद भारत का सपना
चूर हुआ तब गद्दारी से.
लाखों मारे गये बचा नहिं
देश मजहब की बीमारी से.
जिन को भारत की बसुधा ने
सदियों सीने पर झेला था.
अंत समय पर उन दुष्टों ने
खेल विभाजन का खेला था.
भारत भू पर मरने वालों
का हर सपना चूर हो रहा.
राष्ट्र-धर्म की मर्यादा से
भारत वासी दूर हो रहा.
जो पहले गोरे करते थे,
वह सब अब काले करते है.
जनशोषण पहले से बढ़कर
अब कुर्ते वाले करते हैं.
जंगल में गुण्डे रहते थे
सभी अनुभवी यह कहते हैं.
अब विकसित हो रहे देश में
गुण्डे बर्दी में रहते हैं.
झांसी की रानी का जीवन
चला गया गोली कटार में.
भीड़ युवतियों की मिलती अब
फिल्मदर्शकों की कतार में.
साठ बर्ष में दस सदियों के
कष्ट सभी अब भूल गये है.
उन्हें नहीं यह भान राष्ट्रहित
कितने फांसी झूल गये हैं.
भगतसिंह, शेखर, सुभाष का
मन में भाव नहीं रहता है.
आज युवा की वृत्ति देखिये
फिल्मों में जीता मरता है.
देवालय से बढ़कर ‘वीरो’
आज खुल रही हैं मधुशाला.
बच्चे बिना दूध के तरसें
बाप पिये मदिरा का प्याला.
जिस बेटी को लक्ष्मी कहते
जन्म पूर्व मरवा देते हैं.
और अधिक लक्ष्मी पाने को
जीवित ही जलवा देते हैं.
क्या ऐसे भारत की खातिर
ही खुद को बलिदान किया था.
क्या पीड़ा ना होती मन में
क्यों अपना सर दान दिया था.
बलिदानों की वृहत श्रँृखला
पर जो आजादी पाई है.
उसे संभालो अंतरतम से
खुद गुलामी की खाई है.
स्वतंत्रता से उच्छृंखल हो
जो तुम मन ही मन ऐंठोगे.
नहीं यहां कोई स्थिरता
इसे शीघ्र ही दे बैठोगे.
राष्ट्र-धर्म के सभी कार्य में
बढ़कर आगे आना होगा.
गिद्ध दृष्टि जो लगी देश पर
उससे देश बचाना होगा.