Friday, January 11, 2013

रात जिनकी सर्द, चेहरे जर्द लड़ उनके लिए,

है जमाना गर बुरा तो क्या हुआ तू गम न कर,
जीत लड़कर ही मिलेगी आँख को तू नम न कर.

देख आँखें खोलकर के है महाभारत अटल,
कौरवों का साथ मत दे, पांडवों से कम न कर.

लूटता है देश कोई, त्रस्त कोई भूख से,
दे चुनौती रोटियों को लूटने का दम न भर.





दुष्टता पर मौन रहना भी अधम है पाप है,
तू प्रकाशित कर जगत को भूल से भी तम न कर

रात जिनकी सर्द, चेहरे जर्द लड़ उनके लिए,
जीत निश्चित ही मिलेगी बेबजह का भ्रम न कर.

कौन इस विकास में जिया है और मरा,

कौन इस विकास में जिया है और मरा,
बहुत हो चुका है अब तो साचिए जरा.

इतराइये न आप कंगूरे पै बैठकर,
उसका भी कुछ खयाल जो बुनियाद में भरा.


गांधी, सुभाष का ये चमन सूख रहा है,
चश्मा चढ़ा लिया है उससे दीखता हरा.

तुम पर विमान, हम बेमान कुछ तो राज है,
वैसे सभी को एक सा देती है यह धरा.

चूल्हे में नहीं आग जिनके दिल में आग है,
बचियेगा उनसे फोड़ न दें पाप का घड़ा.

कैसे भला अब देश को चुप रख सकेंगे आप,
वह माल लाइये जो विदेशों में है भरा.

यह समंदर है बड़ी गहराइयां हैं.

है न कोई युद्ध बस अंगड़ाइयां है,
मत डरो यह आपकी परछांइयां हैं.

चीखता है दर्द से अब देश सारा,
लग रहा है चल पड़ी पुरबाइयां हैं.

आपकी इन महफिलों से ऊबता जी,
औ’ मनों में आज भी तनहाइयां हैं.

गीत गाओ रोटियों की बात ही क्या,
मौत सस्ती है बड़ी मंहगाइयां हैं.

जो उमड़ता है उसे दरिया न समझो,
यह समंदर है बड़ी गहराइयां हैं.

आँधियां आयें तो टकराते चलो


आँधियां आयें तो टकराते चलो
मत डरो जायेंगी मुस्काते रहो

जिंदगी की जंग लड़नी है तुम्हें
जीतने के गीत बस गाते रहो

यह समय ना एक सा रहता कभी
खुद समझ औरों को समझाते रहो

रात दिन का क्रम सदा चलता रहा
चाँदनी से दिल को बहलाते रहो


सूर्य उगना है उगेगा ही प्रिये
प्रश्न कुछ क्षण और सुलझाते रहो

मुक्तक- सच में वो बन सका अभी इन्सान नहीं है

जिस दिल में देश प्रेम को स्थान नहीं है
पीडि़त गरीब का जहां सम्मान नहीं है
अपनी नजर में चाहे वो जितना बड़ा बने
सच में वो बन सका अभी इन्सान नहीं है

दीपक की तरह खुद को जलाकर तो देखिए
मरुथल में एक पुष्प खिलाकर तो देखिए
आनंद की लहर से पुलक जायेगा हृदय
निर्बल से अपना हाथ मिलाकर तो देखिए

कुछ लोग मिलके देश उठाने में लगे हैं
कुछ ऐसे जो मस्तक को झुकाने में लगे हैं
कुछ ऐसे भी गद्दार हैं जिनको नहीं हया
खाते हैं जिसका उसको मिटाने में लगे हैं

डर-डर के सफर कोई कभी पार न होगा
कुछ तो करों वरना कभी उद्धार न होगा
जीना जो चाहते हो अगर स्वाभिमान से
हिम्मत से काम लो कोई अवतार न होगा

धमकी में हमें चीनो-पाक ले नहीं सकता
सीने पै अब वो घाव नये दे नहीं सकता
हममें भी तो है मिटने-मिटाने का हौसला
हट जाये नाव देश की जो खे नहीं सकता

करते थे राष्ट्र-धर्म की बातें हजार जो
सिंहासनों पै चाहते रहना सवार जो
देखा है हमने उनका गिरेहवान झांककर
साबित हुए हैं रंग में डूबे सियार वो

आँखो में कितने पीर के मंजर गुजर गए
आँसू में जाने कितने समंदर गुजर गए
जब-जब भी हमने दिल को मिलाने की बात की
तब-तब हमारी कोख से खंजर गुजर गए

मुक्तक-तिरंगा गाढ़कर तन में वतन का ऋण चुकाया है

भलाई रास्ता वो जो शिखर के पार जाता है
जमाना भी उसे ना रोक पाता हार जाता है
संभलना तू पथिक चलना अकेले भी यहां होगा
वही एक साथ में होगा नहीं संसार जाता है।

जवानी नाम उसका जो वतन के काम आती है
जवानी वो नहीं जो दूध माता का लजाती है
जरा दिल थामकर सुनना वतन तुमको बुलाता है
उठो, जूझो यही माटी से बस आवाज आती है

हैं हम भारत की वो सन्तान जिसने खंू बहाया है
नहीं हमने कभी माँ भारती का सर झुकाया है
हमारी राष्ट्रभक्ति को कभी गाली नहीं देना
तिरंगा गाढ़कर तन में वतन का ऋण चुकाया है

सिंहासन लोलुपों को आदमी की पीर भाती है
नजर इनको नहीं इस देश की तस्वीर आती है
जरा सोचो किन्हें तुम देश की पतवार देते हो
अनाड़ी नाविकों से नाव अक्सर डूब जाती है