Thursday, January 24, 2013

मुम्बई घटना पर आक्रोश-दस-दस गुण्डे घर में घुस कर मार रहे हैं

कभी-कभी दिल सोच-सोच बैठा जाता है
घोर निराशा के क्षण में भारत माता है
हम स्वाधीन शक्ति होकर भी हार रहे हैं
दस-दस गुण्डे घर में घुस कर मार रहे हैं

और हमारा रक्त, रक्त है या है पानी
अय्याशी को शेष, देश को मरी जवानी
सभी बनेंगे लिपिक, चिकित्सक या अभियन्ता
कौन मूढ़ जो बने राष्ट्र का भाग्य नियन्ता
सजधज सड़कों पर फिल्मी गाने गायेंगे
क्या पागल जो सीमा पर लड़ने जायेंगे
और देश के अन्दर भी कोई मारेगा
गांधीगीरी के आगे वो ही हारेगा

भगवा धारण किये धर्म के जो चिन्तक हैं
लगता सबसे बड़े आज वे ही वंचक हैं
राम-कृष्ण की बात किन्तु हैं शस्त्रविरोधी
ज्ञानी बनते फिरें किन्तु बुद्धि है खो दी
पिटने वाले को मानवता समझाते हैं
भला बताते नहीं माल जिसका खाते हैं
आत्ममुग्ध हो नशा चढ़ाये रहते मन को
या गांजे की चिलम चढ़ाये रहते तन को
आत्मज्ञान की बात मृत्यु का भय होता है
इन्हीं दोगलों से समाज का क्षय होता है

लोकदिशा जो देते थे गढ़कर कविताऐं
जो वाणी बल पर मोड़ा करते सरिताऐं
वे अधिकांश लगे मनमोहक श्रृंगारों में
मोल बताते अपना खुलकर बाजारों में
लिखते फूहड़ गीत और साहित्य बताते
आत्मप्रशंसा करते मन ही मन मुस्काते
वे ही कालीदास और ना कोई दूजा
डालो पुष्पाहार करो सब इनकी पूजा
सोचो! कवि यदि भोगमयी साहित्य रचेगा
तो फिर कैसे त्यागमयी यह देश बचेगा

खुद को लोकतंत्र का जो स्तंभ बताते
देश जगाने वाला कहकर दंभ जताते
उनकी कलम दलाली के बल पर चलती है
सत्य दबा देती है जनता को छलती है

शिक्षा वह आधार जहां बनता चरित्र है
जिसका कोई नहीं ज्ञान उसका भी मित्र है
लेकिन तब क्या जब शिक्षक में त्याग नहीं हो
वेतन की ही चाह भाव की आग नहीं हो
कौन बनाये राम, बनाये कौन शिवाजी
शिक्षक अक्षर ज्ञान बताने तक ना राजी

सत्ता तो लगती है अब गुण्डों की दासी
निर्बल-निर्धन-कमजोरों के खूं की प्यासी
माननीय वे जो; तिहाड़ के अधिकारी हैं
वे इलाज क्या होंगे खुद ही बीमारी हैं
आज पुनः धृतराष्ट्र सिंहासन पर बैठे हैं
लूटपाट कर रहे सभी उनके बेटे हैं

अरे साथियो आज देश हित जुटना होगा
वरना निश्चित ही पिटना और लुटना होगा
हर जगहा मुम्बई जैसे गुण्डे टूटेंगे
पाक इशारे पर वे प्राणों को लूटेंगे
और नपुसक राजनीति कुछ कर न सकेगी
टूट पड़ी विपदा को शायद हर न सकेगी

मैं भी नहीं चाहता कुछ भी कड़वा बोलूं
अच्छा सुन्दर कहूं भला क्यों बिष सा घोलूं
पर कहता हूं ऐसों को सम्मान न देना
केवल शब्दों तक से कोई मान न देना
मेरा देश बचादें मैं गुणगान करूंगा
एक इशारे पर जीवन तक दान करूंगा

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