Wednesday, January 23, 2013

कष्टों की आधार शिला पर जब जीवन बढ़ता है.

कष्टों की आधार शिला पर जब जीवन बढ़ता है.
केवल उस क्षण ही ईश्वर मानव चरित्र गढ़ता है.
चलो अकेले ही साहस से ढूढ़ो नहीं सहारे.
धारा के अनुगामी होओ, खोजो नहीं किनारे.
टूटन चुभन और पीड़ाओ में, जिनका हो जीना.
उपहासों, अपमानों का भी गरल पड़े जब पीना.
अपनों और परायों से जो साथ-साथ लड़ता है.
केवल उस क्षण ही ईश्वर .......................

धन्यवाद दो तुम कष्टों को वे जब-जब आते हैं.
बढ़ा ज्ञान जीवन में तब-तब दूर चले जाते हैं.
और काश यदि ऐसा शिक्षक जीवन में ना आये.
तो निश्चित ही जीवन गहरी तन्द्रा में खो जाये.
है प्रभु का वरदान, ‘मनुज चेतन’ सीढ़ी चढ़ता है.
केवल उस क्षण ही ईश्वर .......................

जिधर चलो तुम उसी दिशा में राह कंटीली आयें.
बड़े-बड़े दुर्योग साथ ही संयोजित हो जायें.
ईश्वर में विश्वास और हो ध्येय शुद्ध मानव का.
स्वयं ऊर्जा आ जाती है, हो विरोध दानव का.
मिटना है तो मिट ही जाये, ना मन में कुढ़ता है.
केवल उस क्षण ही ईश्वर .......................

कष्टों में भी निर्मल होना, ना कूड़े का डबरा.
और अंततः बाँध न पाये, सोने का भी पिंजरा.
जब मानव चरित्र ऐसा हो, उसे कौन क्या देगा?.
आना-जाना, खाली-खाली, कोई क्या ले लेगा?.
हानि लाभ से मुक्त गगन में जब पंछी उड़ता है.
केवल उस क्षण ही ईश्वर .......................

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