आज हिन्द, हिन्दी, हिन्दू का
मान जगत में नहीं रहा है।
इसीलिये भारत का भी
सम्मान जगत में नहीं रहा है।
छोड़ निजी भाषा संस्कृति को
हम ‘पर‘ द्वारे झांक रहे हैं।
त्याग सभ्यता भारत भू की
वैश्या के घर ताक रहे हैं।
और मूढ़ता के बश होकर
हम विकास का स्वप्न देखते।
छोड़ स्वयं के अतुल कोष को
कूढ़े में हैं रतन देखते।
हिन्दी नहीं शब्द का संग्रह
यह भारत मां की बिन्दी है।
विश्वमंच पर परख देखिये
सर्वश्रेष्ठ भाषा हिन्दी है।
धन्य ‘शूलजी’ समिति धन्य है
जो हिन्दी को रक्षित करती।
निज भाषा का मान बढ़ाकर
निज गौरव संरक्षित करती।
और सभी जन संकल्पित हों
नहीं रहेंगे अब भूलों पर।
पुष्पों की रक्षा का केवल
भार नहीं होता शूलों पर।
मान जगत में नहीं रहा है।
इसीलिये भारत का भी
सम्मान जगत में नहीं रहा है।
छोड़ निजी भाषा संस्कृति को
हम ‘पर‘ द्वारे झांक रहे हैं।
त्याग सभ्यता भारत भू की
वैश्या के घर ताक रहे हैं।
और मूढ़ता के बश होकर
हम विकास का स्वप्न देखते।
छोड़ स्वयं के अतुल कोष को
कूढ़े में हैं रतन देखते।
हिन्दी नहीं शब्द का संग्रह
यह भारत मां की बिन्दी है।
विश्वमंच पर परख देखिये
सर्वश्रेष्ठ भाषा हिन्दी है।
धन्य ‘शूलजी’ समिति धन्य है
जो हिन्दी को रक्षित करती।
निज भाषा का मान बढ़ाकर
निज गौरव संरक्षित करती।
और सभी जन संकल्पित हों
नहीं रहेंगे अब भूलों पर।
पुष्पों की रक्षा का केवल
भार नहीं होता शूलों पर।
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