आज फिर से है संकट खड़ा हो रहा।
कल था छोटा मगर अब बड़ा हो रहा।
बच सके मातृभूमि जतन कीजिये।
आगे बढ़ बांध सर पर कफन लीजिये।
आप अपनी ही मस्ती में क्यूं चूर हैं।
बस सुनामी की लहरें कुछ ही दूर हैं।
देशद्रोही का खेमा बड़ा हो रहा।
आज फिर से है..............................।
लूटा धन को है दौलत को सम्मान को।
तोड़े मन्दिर न छोड़ा है भगवान को।
और हम फिर से मन्दिर ही गढ़ते रहे।
भय के मारे थे गीता ही पढ़ते रहे।
गीता पढ़ ली न समझे अभी सार को।
डूबी नैया न थामा है पतवार को।
अपना मन पाप का इक घड़ा हो रहा।
आज फिर से है..............................।
हो मनुज तो स्वयं के ही हित कुछ करो।
जाग जाओ अरे स्वांस फिर से भरो।
हो सका जाग कर मृत्यु टल जायेगी।
कुछ किया तो ये सृष्टि बदल जायेगी।
छोड़कर लोभ, लालच जुड़ो प्रीति से।
संगठित हो करो काम कुछ नीति से।
देश पर आंख अपनी गढ़ा वो रहा।
आज फिर से है.............................।
कल था छोटा मगर अब बड़ा हो रहा।
बच सके मातृभूमि जतन कीजिये।
आगे बढ़ बांध सर पर कफन लीजिये।
आप अपनी ही मस्ती में क्यूं चूर हैं।
बस सुनामी की लहरें कुछ ही दूर हैं।
देशद्रोही का खेमा बड़ा हो रहा।
आज फिर से है..............................।
लूटा धन को है दौलत को सम्मान को।
तोड़े मन्दिर न छोड़ा है भगवान को।
और हम फिर से मन्दिर ही गढ़ते रहे।
भय के मारे थे गीता ही पढ़ते रहे।
गीता पढ़ ली न समझे अभी सार को।
डूबी नैया न थामा है पतवार को।
अपना मन पाप का इक घड़ा हो रहा।
आज फिर से है..............................।
हो मनुज तो स्वयं के ही हित कुछ करो।
जाग जाओ अरे स्वांस फिर से भरो।
हो सका जाग कर मृत्यु टल जायेगी।
कुछ किया तो ये सृष्टि बदल जायेगी।
छोड़कर लोभ, लालच जुड़ो प्रीति से।
संगठित हो करो काम कुछ नीति से।
देश पर आंख अपनी गढ़ा वो रहा।
आज फिर से है.............................।
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