दीप जलने लगें तो, बढ़े लालिमा।
अनवरत ज्योति से, दूर हो कालिमा।
खो ही जाए तिमिर एक आलोक से।
पाप मिट जाए सब राम के लोक से।
मुक्त मन, ना कि अब, आवरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित जागरण चाहिए।
छीने अब ना किसी की भी, रोटी कोई।
लूट से ना बने, बंगला कोठी कोई।
अब कृषक ना कोई आत्मघाती बने।
अब न मजदूर निर्बल पै कोई तने।
ऊंच ना नीच, सम, आचरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित............................।
अब न तड़पे कोई बृद्ध, विधवा कहीं।
मान रक्षा को चीखे, न अबला कहीं।
तुच्छ ‘‘मैं’’ से न हिंसा की घातें बढ़ें।
स्वार्थ प्रेरित परस्पर न बन्धू लडे़ं।
देश में ऐसा, वातावरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित.............................।
अनवरत राष्ट्रभक्ति का, संचार हो।
देश में कोई जीवित, न गद्दार हो।
धर्मच्युत धन के बल पर न कोई करे।
ना मजहब राष्ट्र खंडन की बातें करे।
ऐसा जीवन, कि या फिर, मरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित.............................।
अनवरत ज्योति से, दूर हो कालिमा।
खो ही जाए तिमिर एक आलोक से।
पाप मिट जाए सब राम के लोक से।
मुक्त मन, ना कि अब, आवरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित जागरण चाहिए।
छीने अब ना किसी की भी, रोटी कोई।
लूट से ना बने, बंगला कोठी कोई।
अब कृषक ना कोई आत्मघाती बने।
अब न मजदूर निर्बल पै कोई तने।
ऊंच ना नीच, सम, आचरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित............................।
अब न तड़पे कोई बृद्ध, विधवा कहीं।
मान रक्षा को चीखे, न अबला कहीं।
तुच्छ ‘‘मैं’’ से न हिंसा की घातें बढ़ें।
स्वार्थ प्रेरित परस्पर न बन्धू लडे़ं।
देश में ऐसा, वातावरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित.............................।
अनवरत राष्ट्रभक्ति का, संचार हो।
देश में कोई जीवित, न गद्दार हो।
धर्मच्युत धन के बल पर न कोई करे।
ना मजहब राष्ट्र खंडन की बातें करे।
ऐसा जीवन, कि या फिर, मरण चाहिए-2
राष्ट्र रक्षा के हित.............................।
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