आर्य देश भारत का जग में नाम रहा है ऊँचा
लेकिन केवल तब तक जब तक काम रहा है ऊँचा
ज्ञान पताका भारत की सारे जग में छाती थी
सारे जग की तरूणाई हम से शिक्षा पाती थी
भरद्वाज, नागार्जुन जैसे विज्ञानी की धरती
ज्ञान और विज्ञान सिखाने को आकर्षित करती
रामप्रभु का मर्यादा पालन अदभुत् चरित्र था
और कृष्ण के सत्स्वरूप में भी एक दिव्य चित्र था।
जाति-पांति का भेद नही था आर्य-आर्य थे भाई
आर्य जगत में ऊँच नीच की नहीं पड़ी थी खाई
कर्मों से अधिकार प्राप्त थे, कोई द्वेष नहीं था।
भरे पेट थे सबके भूखा कोई शेष नहीं था।
प्रचुर रूप सम्पत्ति भला संग्रह की बात कहां थी।
त्यागमयी जीवन दर्शन में कोई घात कहाँ थी।
सभी सुखी हो; सभी निरोगी ये हम ही कहते थे।
जप-तप-नियम और संयम से ही जीवन जीते थे।
दया-दान से भक्ति-ज्ञान से बढ़ी धीरता हममें
परहित में बलिदान भाव ने गढ़ी वीरता हममें
निःसंदेह उड़ायें कोई अब उपहास हमारा
किन्तु सैकड़ों सदी पुराना है इतिहास हमारा
कही त्याग है, कहीं शौर्य है, पीड़ा कही घनेरी,
कभी रुदन का करुणानाद है, कभी बजी रण भेरी
किन्तु शान्ति के अनुचित दर्शन की शैतानी माया
वैभव बढ़ता गया किन्तु मन में आलस था छाया
जब बढ़ता है वैभव आलस खुद ही आ जाता है
दमक रहे आनन पर तम का बादल छा जाता है
ईश्वर की भी कृपा सदा उस ‘जाती’ पर रहती है
दुष्टजनों पर जिन की हरदम भृकुटि तनी रहती है
धन वैभव और सत्य तभी तक जीवित रह सकते हैं
जब तक उससे पोषित जन पीड़ा भी सह सकते हैं
और नहीं तो शैतानी दर्शन आगे बढ़ता है
जो चरणों का पात्र पकड़ गर्दन सिर पर चढ़ता है
तभी मही के अन्य भाग पर जो भूखे थे बर्बर
ज्ञान और दर्शन के जिनके कोष पड़े थे जर्जर
वे आये सम्पत्ति लूटने भारत में दल लेकर
योगमयी भूमि को रोंदा पशुओं सा बल लेकर
मंगोलों, अरबों ने भारत शक हूणों ने लूटा
लेकिन फिर भी हिन्दु जाति का दर्प नहीं था टूटा
वैभव से जन्मी विकृति का लाभ दुष्ट ने पाया
पंख नौंचने स्वर्णपक्षि के बार-बार वह आया
किन्तु चुकानी पड़ी उसे भी कीमत इसकी भारी
दृश्य दिखाये हमने भी कुछ उनको हाहाकारी
किन्तु कहें क्या हाय फूट ने अपना असर दिखाया
धीरे-धीरे गीदड़ ने सिंह के घर पैर जमाया।
जो थे समझौतेवादी, वे तो झुकते जाते थे
थे स्वाभिमान से भरे हुए मरकर चुकते जाते थे
कुछ छीना भारत दुष्टों ने हिंसा मक्कारी से
कुछ हमने भी दे डाला अपनी ही गद्दारी से
शासक उन्हें बनाया जिनको अन्न न था खाने को
लाखों देवालय तुड़वाये इक तमगा पाने को
धन-दौलत को लूटने वाले बने देश के राजा
धर्म-संस्कृति पा सकती थी फिर कैसे दम ताजा
फिर क्या कहें, बतायें कैसे, क्या-क्या हमने झेला
दुष्टों ने सत्ता पाकर के खेल दानवी खेला
माँ-बहिनों के स्तन काटे ग्रन्थागार जलाये
बैलों से चलते कोल्हू हिन्दू-जन से चलवाये
चैहानों के लाल कोट को लाल किला कर डाला
राजमहल का नाम बदल कर ताजमहल रख डाला
विक्रम का जो बेध खंभ ज्योतिष गणना का बिन्दू
नाम कुतुबुमीनार उसी का नहीं जानता हिन्दू
इसी काल में हिन्दू होने का हम ‘कर’ देते थे
या चोटी देते थे या फिर पूरा सर देते थे
और हमारी बहिन-बेटियाँ हरना पाप नहीं था
इसीलिए जौहर में जलना भी अभिशाप नहीं था
इसी काल भारत भूमि ने लाखों वीर गवांये
शासक तो वे रहे किन्तु वह जीत हमें ना पायें
बप्पा रावल, पृथ्वीराज या हो राणा बलिदानी
वीर शिवा के छद्म युद्ध की अद्भुत अजब कहानी
इस्लामिक बर्बरता हमसे दस सदियों तक जूझी
अब दोनों को मजा चखा दे, अंग्रेजों को सूझी
व्यापारी का भेष बनाकर के भारत मंे आये
मक्कारी से मक्कारों को चोट वही दे पाये
शनैः शनैः व्यापार बढ़ाया फिर शासन हथियाया
कान पकड़कर राजभवन से गुण्डों को धकियाया
जो करते थे दमन, दमन उनने भी जमकर झेला
अंग्रेजी डंडा जमकर उनकी काया से खेला
मालिक नया मिला भारत को और चली फिर गाड़ी
दीन-हीन हमने देखा खिंचते माता की साड़ी
मन में भी विश्वास क्षीण या हाथ हो गये भारी;
पीठ झुका कर फिर चल दौड़े लेकर नई सवारी
और चले पच्चीस दशक तक गहन क्षोभ में जीकर
अपमानों-अत्याचारों का गरल कसैला पीकर
किन्तु नही थे सभी जिन्होंने था इसको स्वीकारा
दुष्टों के दानवी कृत्य से हर कोई ना हारा
जो मन से स्वच्छन्द उसे कोई कैसे बाँधेगा
राष्ट्र कार्य संकल्प कड़ा हो कोई क्या करे लेगा
फिर भारत भू के आंगन में जागी नई जवानी
आजादी के दीवानों ने लिख दी नई कहानी
मंगलपाण्डे ने विद्रोही ध्वजा हाथ में लेली
जोश जगाकर निज गौरव का फांसी तक थी झेली
और चला फिर क्रम कुछ ऐसा एक-एक से आगे
अंग्रेजी मोटी रस्सी के टूट रहे थे धागे
दमन किया स्वतंात्र्य यज्ञ का बहुत चलाकर गोली
मरने वालों की फिर भी बढ़ती जाती थीं टोली
मातृभूमि की लाज बचाने को नारी भी आई
इक छोटी सी टोली ले भिड़ बैठी लक्ष्मीबाई
सत्तावन से सैंतालिस तक धूम मचाई भारी
मातृभूमि की रक्षा को नित प्रकट हुए अवतारी
इक सुभाष जिसने शक्ति को शक्ति से ही तोड़ा
जर्मन, इटली, जापानी सत्ता से नाता जोड़ा
जो समझे थे वीर स्वयं को उनको धूल चटा दी
फूले नहीं समाते थे उनको औकात बता दी
वो शेखर आजाद नहीं करते थे कभी समर्पण
गोली का उत्तर गोली से नहीं सत्य का अर्पण
भगत सिंह, अशफाकउल्ला की अद्भुत थी कुर्बानी
अनगिन वीरों ने लिख डाली मिलकर नई कहानी
विश्व युद्ध में अरु भारत में दोनों ओर लडें थे
रक्त पिला धरती को आजादी की ओर बढ़े थे
इसी समय को ताक रहा था मजहब वाला विषधर
सत्ता को हथिया लेने के ढूँढ़ रहा था अवसर
अवसर जाते देख हाथ गोरों से तुरत मिलाया
फिर भारत को खण्डित करने का अभियान चलाया
राजनीति के प्रेमी को केवल सत्ता थी प्यारी
इसीलिए पापी की शायद मांग गई स्वीकारी
और अन्ततः हिन्दू जाति की फिर से किस्मत फूटी
जिसके हेतू रक्त बहाया वह भारत मँा टूटी
टूट पड़े दानव, मानव पर जम कर रक्त बहाया
भारत माँ के वक्षस्थल पर पाकिस्तान बनाया
शान्ति दूत गांधी जी का भी टूट गया था सपना
उसने खूँ की होली खेली, जो था उनका अपना
धन-दौलत सम्मान लुटाकर हिन्दु वहाँ से भागे
लाखों जीवन लुटे, नहीं भारत के नेता जागे
एक तरफ से मार रही थी भारत को गद्दारी
और दूसरी ओर खड़ी थी अपनी रंगी सियारी
सत्य-अहिंसा के अति की थी जपी जा रही माला
और पाक को इसीलिए पचपन करोड़ दे डाला
खूब पिलाओ दूध साँप को जहर बना करता है
और दुष्ट पालक पर ही बेबात तना करता है
पीकर जहर विभाजन का हम बैठ गये चुप होकर
राजनीति में शोक न था, भारत का मस्तक खोकर
पाक समर्थक को भी पापी राजनीति ने रोका
राष्ट्रवाद के दिल में गद्दारी का नश्तर भौंका
हिन्दु जाति ने सोचा फिर से भारत नया गढ़ेगें
मानवता की ले मशाल दुनिया की ओर बढ़ेंगे
दयानन्द का स्वप्न, विवेकानन्द पुनः जागेंगे
धर्म ध्वजा होगी प्रचण्ड पापी डरकर भागेंगे
भारत एक बनेगा, फिर से दुनिया में चमकेंगे
नहीं भिखारी होंगे सब को कुछ ना कुछ तो देंगे
आजादी का लाभ देश में अंत तलक जायेगा
सदियों से जो दुखी रहा वह भी अब सुख पायेगा
अपना तंत्र और शासन सब कुछ ही अपना होगा।
बनें नींव के पत्थर उनका पूरा सपना होगा।
किन्तु नहीं यह सत्य हुआ लाखों घर में कूमिल हैं
आजादी लाने वालों के ‘अभी स्वप्न धूमिल हैं’
भारत ‘एक’ बनाने को हम धर्महीन बन बैठै
सैकूलर सिंहासन कह पाखण्डी जन, तन बैठे
सत्ता सुख में लीन रहे सब ही बारी-बारी से
लूटा और लुटाया भारत पूरी तैयारी से
कारागार जिन्हें होना था खादी में छुप बैठे।
सत्य अहिंसा के पालक अपने घर में चुप बैठे
अब-तक भारत में आतंकी हिंसा नही रूकी है
मध्यकाल से जिसको देखा, अब भी नहीं चुकी है
सीमा के अन्दर बाहर षड़यन्त्र हो रहे भारी
भारत को टुकड़े-टुकड़े करने की है तैयारी
कभी पाक के गुण्डे हम पर रौब जमा जाते हैं
कभी चीन के हाथ हमारी ध्वजा हिला जाते हैं
घर में भी हम सुखी नहीं बाहर ऐसी तैसी है
मानवता के दर्शन की देखो हालत कैसी है
छः दशकों के बाद देश ने सोचो क्या पाया है
कंकरीट के जंगल हैं या व्यसनों की माया है
भूख करोड़ो ने पाई है और मिली बेकारी
उदर पूर्ति के हेतु बढ़ी तन सौदे की दुश्वारी
भोगवाद का दर्शन कैसा अट्टाहस करता है
दया-त्याग का भारत देखो शनैः शनैः मरता है
नाम धर्म का लेे आतंकी हिंसा होती जातीं
निरपराध निर्दोषों की नित जानें खोती जातीं
हम अमरीकी दादा से फरियाद किया करते हैं
या फिर हाथ जोड़ ईश्वर को याद किया करते हैं
क्योंकि हमारा सिंहासन ही स्वाभिमान खो बैठा
लगता जैसे इन्द्र हमारा नृत्यमग्न हो लेटा
शासन में जो उसे चाहिए इक सोने की लंका
फिर क्या पड़ी किसी को ठोंके राष्ट्र भक्ति का डंका
हो सकता है राष्ट्र भक्ति में प्राण गंवाने होंगे
कुछ करने के लिए लोह के चने चबाने होंगे
इसीलिए निरपेक्ष धर्म से राष्ट्र लुटाते रहते
तरह-तरह की चालों को भी राष्ट्र-भक्ति हैं कहते
राजनीति सेवा ना कोई सिर्फ एक धन्धा है
जातिवाद के जहर सना मतदाता भी अन्धा है
तथाकथित आजादी में काले अंग्रेज बढ़े हैं
आजादी के लिए लडे़ जो अब भी वहीं खड़े हैं
कहीं खुली तो कहीं-कहीं, गुप-चुप सिसकी जारी है
दुनिया भर से लड़ी कौम अपनों से ही हारी है
कहीं भूख के कारण कैसा नक्सलवाद खड़ा है
कहीं अन्न का लालच देकर माओवाद बढ़ा है
कहीं बीस से तीस रुपैया जिस्मों की कीमत है
भाग्यवाद के भारत में यह भी केवल किस्मत है
और कहीं पर माँ के हाथों ही बच्चा बिकता है
कहीं बोध से मुक्त बाल का शोषण तक दिखता है।
आज देश का दर्शन भी अश्लील बना डाला है
केवल भोग विलासों वाली झील बना डाला है
यह सुभाष का नहीं और ना गांधी का भारत है
यह गुण्डों के हाथों है गुण्डों से ही आरत है
चार सौ लाख करोड़ देश का गुण्डे लूट चुके हैं
बीस हजार किसान दुःखी हो तन से छूट चुके हैं
रुपये बीस कमाते प्रतिदिन है करोड़ चैरासी
निर्धन की भारत माता तो पहले जैसी दासी
सत्तर लाख वर्ष में भूखे रह कर मर जाते हैं
और अगर जीवित रहते हैं तो जूठन खाते हैं
आज देश की आधी आबादी ही निर-अक्षर है
और देश में नेता जी का चैका है सिक्सर है
आज देश मंे बिना पढ़े हाथों को काम नहीं है
और काम भी है तो उसका पूरा दाम नही है
एक ओर हो त्रस्त अभावों से भारत मरता है
सेवा का ले नाम देश की कोई स्विस भरता है
कोई देश लूटकर केवल इटली को भरता है
कोई रोटी खा गरीब की नाटक सा करता है
कोई मन्दिर-मस्जिद के झंझट में उलझाता है
खड़ा विवादांे को करता है कुछ ना सुलझाता है
ले दलितों का नाम शेरनी कोई बन जाती है
तोड़-फोड़ के सौदे कर जमकर दौलत खाती है
आजमगढ़ जा आतंकों की बेल बढ़ाता कोई
ओसामा जी कहकर श्रद्धासुमन चढ़ाता कोई
सार रूप में समझो केवल भ्रष्टाचार बढ़ा है
केवल नैतिकता के शब्दों का व्यापार बढ़ा है
आज देश-संस्कृति से सत्ताओं को प्यार नहीं है
और देश का शासक भी सच्चा सरदार नहीं है
ऐसे क्रूर काल में कोई महामनुज आया है
जनता का है साथ और जिस पर ईश्वर छाया है
है सच की तलवार हाथ में सब पर ही है भारी
‘बाबा रामदेव’ कहते हैं लगता है अवतारी
याोग सिद्ध है, युग नायक है लगता जग त्राता है
जिसका कोई नहीं जगत में वो उसका भ्राता है
बांध लंगोटी कूद पड़ा है महासमर लड़ने को
क्रान्तिकारियों के भारत का स्वप्न अमर करने को।
और साथ में लगे हुए मरहाठी वीर हजारे
मार रहे हैं सत्ता को वे थप्पड़ बड़े करारे
गुण्डों से यह देश बचे वे मिलकर जूझ रहे हैं
और देश का जमा-बकाया दोनों पूंछ रहे है
अरे साथियो युग बदलेगा साथ जरा तुम आओ
जातिवाद से राष्ट्र बड़ा है, समझो और समझाओ
रोटी-कपड़ा अरु मकान सब जन ही पा जायेंगे
जीवन जीने की कतार में सब ही आ जायेंगे
अन्न-प्रदाता जो किसान है, भूखा नहीं मरेगा
शिक्षा और स्वास्थ्य पायेगा, उन्नति देश करेगा
सबको ही कुछ काम मिलेगा सबकी भूख मिटेगी
उजड़ी जाती आज जिन्दगी सुख से अरे कटेगी
सीमा-पार और अन्दर हम डर से नहीं रहेंगे
शक्ति हाथ में होगी सबसे सच्ची बात कहेंगे
मानवता को धर्म मान हमको आगे बढ़ना है
मानवता के सभी विरोधों से डटकर लड़ना है
अरे बन्धुओ! देश बचाने को आगे आ जाओ
बहुत हो चुकी मक्कारी मक्कारों को बतलाओ
स्विस का धन अपना धन है उसको वापस लाना है
और पकड़ कर दोषी को काराग्रह ले जाना है
अफजल और कसाबों को फांसी पर लटकाना है
पूआ-पूड़ी नहीं राष्ट्र है उनको बतलाना है
फिर भी ना मानें तो सीमा में घुस धमकाना है
मार-मार कर इन दुष्टों को भारत समझाना है
चीन-पाक को समझाना है छोड़ो जी मक्कारी
अपने हाथ जला देती है कभी-कभी हुशियारी
अगर नहीं मानोगे तो हम जड़े हिला डालेंगे
हम भी तो परमाणु-शक्ति, हम तुम्हें जला डालेंगे
लेकिन यह तब ही होगा जब गद्दार देश में ना हों
अवसरवादी दुष्टों की सरकार देश में ना हों
अपने भारत का खोया गौरव वापस लाना है
स्वाभिमान से ही जीना है या फिर मर जाना है
लेकिन केवल तब तक जब तक काम रहा है ऊँचा
ज्ञान पताका भारत की सारे जग में छाती थी
सारे जग की तरूणाई हम से शिक्षा पाती थी
भरद्वाज, नागार्जुन जैसे विज्ञानी की धरती
ज्ञान और विज्ञान सिखाने को आकर्षित करती
रामप्रभु का मर्यादा पालन अदभुत् चरित्र था
और कृष्ण के सत्स्वरूप में भी एक दिव्य चित्र था।
जाति-पांति का भेद नही था आर्य-आर्य थे भाई
आर्य जगत में ऊँच नीच की नहीं पड़ी थी खाई
कर्मों से अधिकार प्राप्त थे, कोई द्वेष नहीं था।
भरे पेट थे सबके भूखा कोई शेष नहीं था।
प्रचुर रूप सम्पत्ति भला संग्रह की बात कहां थी।
त्यागमयी जीवन दर्शन में कोई घात कहाँ थी।
सभी सुखी हो; सभी निरोगी ये हम ही कहते थे।
जप-तप-नियम और संयम से ही जीवन जीते थे।
दया-दान से भक्ति-ज्ञान से बढ़ी धीरता हममें
परहित में बलिदान भाव ने गढ़ी वीरता हममें
निःसंदेह उड़ायें कोई अब उपहास हमारा
किन्तु सैकड़ों सदी पुराना है इतिहास हमारा
कही त्याग है, कहीं शौर्य है, पीड़ा कही घनेरी,
कभी रुदन का करुणानाद है, कभी बजी रण भेरी
किन्तु शान्ति के अनुचित दर्शन की शैतानी माया
वैभव बढ़ता गया किन्तु मन में आलस था छाया
जब बढ़ता है वैभव आलस खुद ही आ जाता है
दमक रहे आनन पर तम का बादल छा जाता है
ईश्वर की भी कृपा सदा उस ‘जाती’ पर रहती है
दुष्टजनों पर जिन की हरदम भृकुटि तनी रहती है
धन वैभव और सत्य तभी तक जीवित रह सकते हैं
जब तक उससे पोषित जन पीड़ा भी सह सकते हैं
और नहीं तो शैतानी दर्शन आगे बढ़ता है
जो चरणों का पात्र पकड़ गर्दन सिर पर चढ़ता है
तभी मही के अन्य भाग पर जो भूखे थे बर्बर
ज्ञान और दर्शन के जिनके कोष पड़े थे जर्जर
वे आये सम्पत्ति लूटने भारत में दल लेकर
योगमयी भूमि को रोंदा पशुओं सा बल लेकर
मंगोलों, अरबों ने भारत शक हूणों ने लूटा
लेकिन फिर भी हिन्दु जाति का दर्प नहीं था टूटा
वैभव से जन्मी विकृति का लाभ दुष्ट ने पाया
पंख नौंचने स्वर्णपक्षि के बार-बार वह आया
किन्तु चुकानी पड़ी उसे भी कीमत इसकी भारी
दृश्य दिखाये हमने भी कुछ उनको हाहाकारी
किन्तु कहें क्या हाय फूट ने अपना असर दिखाया
धीरे-धीरे गीदड़ ने सिंह के घर पैर जमाया।
जो थे समझौतेवादी, वे तो झुकते जाते थे
थे स्वाभिमान से भरे हुए मरकर चुकते जाते थे
कुछ छीना भारत दुष्टों ने हिंसा मक्कारी से
कुछ हमने भी दे डाला अपनी ही गद्दारी से
शासक उन्हें बनाया जिनको अन्न न था खाने को
लाखों देवालय तुड़वाये इक तमगा पाने को
धन-दौलत को लूटने वाले बने देश के राजा
धर्म-संस्कृति पा सकती थी फिर कैसे दम ताजा
फिर क्या कहें, बतायें कैसे, क्या-क्या हमने झेला
दुष्टों ने सत्ता पाकर के खेल दानवी खेला
माँ-बहिनों के स्तन काटे ग्रन्थागार जलाये
बैलों से चलते कोल्हू हिन्दू-जन से चलवाये
चैहानों के लाल कोट को लाल किला कर डाला
राजमहल का नाम बदल कर ताजमहल रख डाला
विक्रम का जो बेध खंभ ज्योतिष गणना का बिन्दू
नाम कुतुबुमीनार उसी का नहीं जानता हिन्दू
इसी काल में हिन्दू होने का हम ‘कर’ देते थे
या चोटी देते थे या फिर पूरा सर देते थे
और हमारी बहिन-बेटियाँ हरना पाप नहीं था
इसीलिए जौहर में जलना भी अभिशाप नहीं था
इसी काल भारत भूमि ने लाखों वीर गवांये
शासक तो वे रहे किन्तु वह जीत हमें ना पायें
बप्पा रावल, पृथ्वीराज या हो राणा बलिदानी
वीर शिवा के छद्म युद्ध की अद्भुत अजब कहानी
इस्लामिक बर्बरता हमसे दस सदियों तक जूझी
अब दोनों को मजा चखा दे, अंग्रेजों को सूझी
व्यापारी का भेष बनाकर के भारत मंे आये
मक्कारी से मक्कारों को चोट वही दे पाये
शनैः शनैः व्यापार बढ़ाया फिर शासन हथियाया
कान पकड़कर राजभवन से गुण्डों को धकियाया
जो करते थे दमन, दमन उनने भी जमकर झेला
अंग्रेजी डंडा जमकर उनकी काया से खेला
मालिक नया मिला भारत को और चली फिर गाड़ी
दीन-हीन हमने देखा खिंचते माता की साड़ी
मन में भी विश्वास क्षीण या हाथ हो गये भारी;
पीठ झुका कर फिर चल दौड़े लेकर नई सवारी
और चले पच्चीस दशक तक गहन क्षोभ में जीकर
अपमानों-अत्याचारों का गरल कसैला पीकर
किन्तु नही थे सभी जिन्होंने था इसको स्वीकारा
दुष्टों के दानवी कृत्य से हर कोई ना हारा
जो मन से स्वच्छन्द उसे कोई कैसे बाँधेगा
राष्ट्र कार्य संकल्प कड़ा हो कोई क्या करे लेगा
फिर भारत भू के आंगन में जागी नई जवानी
आजादी के दीवानों ने लिख दी नई कहानी
मंगलपाण्डे ने विद्रोही ध्वजा हाथ में लेली
जोश जगाकर निज गौरव का फांसी तक थी झेली
और चला फिर क्रम कुछ ऐसा एक-एक से आगे
अंग्रेजी मोटी रस्सी के टूट रहे थे धागे
दमन किया स्वतंात्र्य यज्ञ का बहुत चलाकर गोली
मरने वालों की फिर भी बढ़ती जाती थीं टोली
मातृभूमि की लाज बचाने को नारी भी आई
इक छोटी सी टोली ले भिड़ बैठी लक्ष्मीबाई
सत्तावन से सैंतालिस तक धूम मचाई भारी
मातृभूमि की रक्षा को नित प्रकट हुए अवतारी
इक सुभाष जिसने शक्ति को शक्ति से ही तोड़ा
जर्मन, इटली, जापानी सत्ता से नाता जोड़ा
जो समझे थे वीर स्वयं को उनको धूल चटा दी
फूले नहीं समाते थे उनको औकात बता दी
वो शेखर आजाद नहीं करते थे कभी समर्पण
गोली का उत्तर गोली से नहीं सत्य का अर्पण
भगत सिंह, अशफाकउल्ला की अद्भुत थी कुर्बानी
अनगिन वीरों ने लिख डाली मिलकर नई कहानी
विश्व युद्ध में अरु भारत में दोनों ओर लडें थे
रक्त पिला धरती को आजादी की ओर बढ़े थे
इसी समय को ताक रहा था मजहब वाला विषधर
सत्ता को हथिया लेने के ढूँढ़ रहा था अवसर
अवसर जाते देख हाथ गोरों से तुरत मिलाया
फिर भारत को खण्डित करने का अभियान चलाया
राजनीति के प्रेमी को केवल सत्ता थी प्यारी
इसीलिए पापी की शायद मांग गई स्वीकारी
और अन्ततः हिन्दू जाति की फिर से किस्मत फूटी
जिसके हेतू रक्त बहाया वह भारत मँा टूटी
टूट पड़े दानव, मानव पर जम कर रक्त बहाया
भारत माँ के वक्षस्थल पर पाकिस्तान बनाया
शान्ति दूत गांधी जी का भी टूट गया था सपना
उसने खूँ की होली खेली, जो था उनका अपना
धन-दौलत सम्मान लुटाकर हिन्दु वहाँ से भागे
लाखों जीवन लुटे, नहीं भारत के नेता जागे
एक तरफ से मार रही थी भारत को गद्दारी
और दूसरी ओर खड़ी थी अपनी रंगी सियारी
सत्य-अहिंसा के अति की थी जपी जा रही माला
और पाक को इसीलिए पचपन करोड़ दे डाला
खूब पिलाओ दूध साँप को जहर बना करता है
और दुष्ट पालक पर ही बेबात तना करता है
पीकर जहर विभाजन का हम बैठ गये चुप होकर
राजनीति में शोक न था, भारत का मस्तक खोकर
पाक समर्थक को भी पापी राजनीति ने रोका
राष्ट्रवाद के दिल में गद्दारी का नश्तर भौंका
हिन्दु जाति ने सोचा फिर से भारत नया गढ़ेगें
मानवता की ले मशाल दुनिया की ओर बढ़ेंगे
दयानन्द का स्वप्न, विवेकानन्द पुनः जागेंगे
धर्म ध्वजा होगी प्रचण्ड पापी डरकर भागेंगे
भारत एक बनेगा, फिर से दुनिया में चमकेंगे
नहीं भिखारी होंगे सब को कुछ ना कुछ तो देंगे
आजादी का लाभ देश में अंत तलक जायेगा
सदियों से जो दुखी रहा वह भी अब सुख पायेगा
अपना तंत्र और शासन सब कुछ ही अपना होगा।
बनें नींव के पत्थर उनका पूरा सपना होगा।
किन्तु नहीं यह सत्य हुआ लाखों घर में कूमिल हैं
आजादी लाने वालों के ‘अभी स्वप्न धूमिल हैं’
भारत ‘एक’ बनाने को हम धर्महीन बन बैठै
सैकूलर सिंहासन कह पाखण्डी जन, तन बैठे
सत्ता सुख में लीन रहे सब ही बारी-बारी से
लूटा और लुटाया भारत पूरी तैयारी से
कारागार जिन्हें होना था खादी में छुप बैठे।
सत्य अहिंसा के पालक अपने घर में चुप बैठे
अब-तक भारत में आतंकी हिंसा नही रूकी है
मध्यकाल से जिसको देखा, अब भी नहीं चुकी है
सीमा के अन्दर बाहर षड़यन्त्र हो रहे भारी
भारत को टुकड़े-टुकड़े करने की है तैयारी
कभी पाक के गुण्डे हम पर रौब जमा जाते हैं
कभी चीन के हाथ हमारी ध्वजा हिला जाते हैं
घर में भी हम सुखी नहीं बाहर ऐसी तैसी है
मानवता के दर्शन की देखो हालत कैसी है
छः दशकों के बाद देश ने सोचो क्या पाया है
कंकरीट के जंगल हैं या व्यसनों की माया है
भूख करोड़ो ने पाई है और मिली बेकारी
उदर पूर्ति के हेतु बढ़ी तन सौदे की दुश्वारी
भोगवाद का दर्शन कैसा अट्टाहस करता है
दया-त्याग का भारत देखो शनैः शनैः मरता है
नाम धर्म का लेे आतंकी हिंसा होती जातीं
निरपराध निर्दोषों की नित जानें खोती जातीं
हम अमरीकी दादा से फरियाद किया करते हैं
या फिर हाथ जोड़ ईश्वर को याद किया करते हैं
क्योंकि हमारा सिंहासन ही स्वाभिमान खो बैठा
लगता जैसे इन्द्र हमारा नृत्यमग्न हो लेटा
शासन में जो उसे चाहिए इक सोने की लंका
फिर क्या पड़ी किसी को ठोंके राष्ट्र भक्ति का डंका
हो सकता है राष्ट्र भक्ति में प्राण गंवाने होंगे
कुछ करने के लिए लोह के चने चबाने होंगे
इसीलिए निरपेक्ष धर्म से राष्ट्र लुटाते रहते
तरह-तरह की चालों को भी राष्ट्र-भक्ति हैं कहते
राजनीति सेवा ना कोई सिर्फ एक धन्धा है
जातिवाद के जहर सना मतदाता भी अन्धा है
तथाकथित आजादी में काले अंग्रेज बढ़े हैं
आजादी के लिए लडे़ जो अब भी वहीं खड़े हैं
कहीं खुली तो कहीं-कहीं, गुप-चुप सिसकी जारी है
दुनिया भर से लड़ी कौम अपनों से ही हारी है
कहीं भूख के कारण कैसा नक्सलवाद खड़ा है
कहीं अन्न का लालच देकर माओवाद बढ़ा है
कहीं बीस से तीस रुपैया जिस्मों की कीमत है
भाग्यवाद के भारत में यह भी केवल किस्मत है
और कहीं पर माँ के हाथों ही बच्चा बिकता है
कहीं बोध से मुक्त बाल का शोषण तक दिखता है।
आज देश का दर्शन भी अश्लील बना डाला है
केवल भोग विलासों वाली झील बना डाला है
यह सुभाष का नहीं और ना गांधी का भारत है
यह गुण्डों के हाथों है गुण्डों से ही आरत है
चार सौ लाख करोड़ देश का गुण्डे लूट चुके हैं
बीस हजार किसान दुःखी हो तन से छूट चुके हैं
रुपये बीस कमाते प्रतिदिन है करोड़ चैरासी
निर्धन की भारत माता तो पहले जैसी दासी
सत्तर लाख वर्ष में भूखे रह कर मर जाते हैं
और अगर जीवित रहते हैं तो जूठन खाते हैं
आज देश की आधी आबादी ही निर-अक्षर है
और देश में नेता जी का चैका है सिक्सर है
आज देश मंे बिना पढ़े हाथों को काम नहीं है
और काम भी है तो उसका पूरा दाम नही है
एक ओर हो त्रस्त अभावों से भारत मरता है
सेवा का ले नाम देश की कोई स्विस भरता है
कोई देश लूटकर केवल इटली को भरता है
कोई रोटी खा गरीब की नाटक सा करता है
कोई मन्दिर-मस्जिद के झंझट में उलझाता है
खड़ा विवादांे को करता है कुछ ना सुलझाता है
ले दलितों का नाम शेरनी कोई बन जाती है
तोड़-फोड़ के सौदे कर जमकर दौलत खाती है
आजमगढ़ जा आतंकों की बेल बढ़ाता कोई
ओसामा जी कहकर श्रद्धासुमन चढ़ाता कोई
सार रूप में समझो केवल भ्रष्टाचार बढ़ा है
केवल नैतिकता के शब्दों का व्यापार बढ़ा है
आज देश-संस्कृति से सत्ताओं को प्यार नहीं है
और देश का शासक भी सच्चा सरदार नहीं है
ऐसे क्रूर काल में कोई महामनुज आया है
जनता का है साथ और जिस पर ईश्वर छाया है
है सच की तलवार हाथ में सब पर ही है भारी
‘बाबा रामदेव’ कहते हैं लगता है अवतारी
याोग सिद्ध है, युग नायक है लगता जग त्राता है
जिसका कोई नहीं जगत में वो उसका भ्राता है
बांध लंगोटी कूद पड़ा है महासमर लड़ने को
क्रान्तिकारियों के भारत का स्वप्न अमर करने को।
और साथ में लगे हुए मरहाठी वीर हजारे
मार रहे हैं सत्ता को वे थप्पड़ बड़े करारे
गुण्डों से यह देश बचे वे मिलकर जूझ रहे हैं
और देश का जमा-बकाया दोनों पूंछ रहे है
अरे साथियो युग बदलेगा साथ जरा तुम आओ
जातिवाद से राष्ट्र बड़ा है, समझो और समझाओ
रोटी-कपड़ा अरु मकान सब जन ही पा जायेंगे
जीवन जीने की कतार में सब ही आ जायेंगे
अन्न-प्रदाता जो किसान है, भूखा नहीं मरेगा
शिक्षा और स्वास्थ्य पायेगा, उन्नति देश करेगा
सबको ही कुछ काम मिलेगा सबकी भूख मिटेगी
उजड़ी जाती आज जिन्दगी सुख से अरे कटेगी
सीमा-पार और अन्दर हम डर से नहीं रहेंगे
शक्ति हाथ में होगी सबसे सच्ची बात कहेंगे
मानवता को धर्म मान हमको आगे बढ़ना है
मानवता के सभी विरोधों से डटकर लड़ना है
अरे बन्धुओ! देश बचाने को आगे आ जाओ
बहुत हो चुकी मक्कारी मक्कारों को बतलाओ
स्विस का धन अपना धन है उसको वापस लाना है
और पकड़ कर दोषी को काराग्रह ले जाना है
अफजल और कसाबों को फांसी पर लटकाना है
पूआ-पूड़ी नहीं राष्ट्र है उनको बतलाना है
फिर भी ना मानें तो सीमा में घुस धमकाना है
मार-मार कर इन दुष्टों को भारत समझाना है
चीन-पाक को समझाना है छोड़ो जी मक्कारी
अपने हाथ जला देती है कभी-कभी हुशियारी
अगर नहीं मानोगे तो हम जड़े हिला डालेंगे
हम भी तो परमाणु-शक्ति, हम तुम्हें जला डालेंगे
लेकिन यह तब ही होगा जब गद्दार देश में ना हों
अवसरवादी दुष्टों की सरकार देश में ना हों
अपने भारत का खोया गौरव वापस लाना है
स्वाभिमान से ही जीना है या फिर मर जाना है
No comments:
Post a Comment