कहने को तो विकास की गंगा बहा रहे हैं।
हम हैं कि रोटियों को गिन-गिन के खा रहे हैं।
मूढ़ों के हाथ शासन कैसी बिडम्वना ये।
ये राष्ट्र की मलाई मिलकर के खा रहे हैं।
सोया हुआ युवा है, संकट में राष्ट्र भारी।
आतंक है चरम पर, निरपेक्षता है न्यारी।
लाखों गऊ की हत्या, हर एक मांसाहारी।
कहने ही भर को माता, ना जान माँ की प्यारी,
पाने को वोट केवल दुम को हिला रहे हैं
कहने को तो विकास...................।
कश्मीर है हमारा क्यों तुम लुटा रहे हो।
क्यों दुश्मनों को दुष्टो मक्खन लगा रहे हो।
फिर भी नहीं तुम्हारा वो पाक अत्याचारी।
वो मान ना सकेगा इक बात भी तुम्हारी।
खुद की हैं टाँगे टूटी, शासन चला रहे हैं।
कहने को तो विकास......................।
इनको न आती लज्जा, जिन्ना को देव कहकर।
पंहुचाया था फलक पर जनता ने कष्ट सहकर।
ये राम जन्मस्थल को बाबरी हैं कहते।
विध्वंस पर ये उसके दुःख व्यक्त करते रहते।
आतंकियों के घर पर दावत उड़ा रहे हैं।
कहने को तो विकास.....................।
हम हैं कि रोटियों को गिन-गिन के खा रहे हैं।
मूढ़ों के हाथ शासन कैसी बिडम्वना ये।
ये राष्ट्र की मलाई मिलकर के खा रहे हैं।
सोया हुआ युवा है, संकट में राष्ट्र भारी।
आतंक है चरम पर, निरपेक्षता है न्यारी।
लाखों गऊ की हत्या, हर एक मांसाहारी।
कहने ही भर को माता, ना जान माँ की प्यारी,
पाने को वोट केवल दुम को हिला रहे हैं
कहने को तो विकास...................।
कश्मीर है हमारा क्यों तुम लुटा रहे हो।
क्यों दुश्मनों को दुष्टो मक्खन लगा रहे हो।
फिर भी नहीं तुम्हारा वो पाक अत्याचारी।
वो मान ना सकेगा इक बात भी तुम्हारी।
खुद की हैं टाँगे टूटी, शासन चला रहे हैं।
कहने को तो विकास......................।
इनको न आती लज्जा, जिन्ना को देव कहकर।
पंहुचाया था फलक पर जनता ने कष्ट सहकर।
ये राम जन्मस्थल को बाबरी हैं कहते।
विध्वंस पर ये उसके दुःख व्यक्त करते रहते।
आतंकियों के घर पर दावत उड़ा रहे हैं।
कहने को तो विकास.....................।
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