जब समय मिलता घड़ी को देखता चलते।
इक उतरती दोपहर का सूर्य सा ढलते।
जब समय ...........................।।
है घड़ी सूचक समय की मत इसे खोना
जो समय चूके पड़ेगा बाद में रोना
यह समय ही साहसी की ढाल बनता है
यह समय ही दुष्टता का काल बनता है।
है समय छलता सभी को हम नहीं छलते
जब समय ...........................।।
इक घड़ी थी वो कभी जब राम का यश था
इक घड़ी जब विश्व भर को कृष्ण में रस था
इक घड़ी जब बुद्ध की दुनिया दिवानी थी
बंधुता की, प्रेम की सब में रवानी थी
दौर ऐसा हर हृदय प्रभु भाव थे पलते
जब समय ...........................।।
इक घड़ी जब दुष्टता का नृत्य था भारी
उस घड़ी में आर्त थे निज देश नर-नारी
उस घड़ी में देवता भी शान्त सोता था
उस घड़ी में सत्य भी बेजार रोता था।
घर, नगर और गाँव जैसे फूंस से जलते
जब समय ........................।।
यह घड़ी सिंहासनों पर चोर बैठे हैं
शर्म तो बिल्कुल नहीं पुरजोर बैठे हैं।
देश का श्रम लूटते खाते मवाली हैं
भारती पर एक धब्बा और गाली हैं।
देखते हम मौन बैठे हाथ हैं मलते
जब समय ..........................।।
इस घड़ी में नफरतों की पौध बढ़ती है।
दुष्टता सिंहासनों की ओर चढ़ती है।
बुद्धि जागे साथ में ही वीरता जागे।
उस घड़ी में ही बढ़ेगा देश यह आगे।
फिर घड़ी भर ना लगेगी दुष्टता ढलते
जब समय ......................।।
इक उतरती दोपहर का सूर्य सा ढलते।
जब समय ...........................।।
है घड़ी सूचक समय की मत इसे खोना
जो समय चूके पड़ेगा बाद में रोना
यह समय ही साहसी की ढाल बनता है
यह समय ही दुष्टता का काल बनता है।
है समय छलता सभी को हम नहीं छलते
जब समय ...........................।।
इक घड़ी थी वो कभी जब राम का यश था
इक घड़ी जब विश्व भर को कृष्ण में रस था
इक घड़ी जब बुद्ध की दुनिया दिवानी थी
बंधुता की, प्रेम की सब में रवानी थी
दौर ऐसा हर हृदय प्रभु भाव थे पलते
जब समय ...........................।।
इक घड़ी जब दुष्टता का नृत्य था भारी
उस घड़ी में आर्त थे निज देश नर-नारी
उस घड़ी में देवता भी शान्त सोता था
उस घड़ी में सत्य भी बेजार रोता था।
घर, नगर और गाँव जैसे फूंस से जलते
जब समय ........................।।
यह घड़ी सिंहासनों पर चोर बैठे हैं
शर्म तो बिल्कुल नहीं पुरजोर बैठे हैं।
देश का श्रम लूटते खाते मवाली हैं
भारती पर एक धब्बा और गाली हैं।
देखते हम मौन बैठे हाथ हैं मलते
जब समय ..........................।।
इस घड़ी में नफरतों की पौध बढ़ती है।
दुष्टता सिंहासनों की ओर चढ़ती है।
बुद्धि जागे साथ में ही वीरता जागे।
उस घड़ी में ही बढ़ेगा देश यह आगे।
फिर घड़ी भर ना लगेगी दुष्टता ढलते
जब समय ......................।।
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