आदमी जिंन्दा है लेकिन आदमीयत खो गई है .
हर हृदय पत्थर हुआ है चेतना सब सोे गई है .
लोग गर्दन काट कर भी ढूंढ़ते फिरते खुशी.
पाप की विषवेल लगता हर जगह पर बो गई है .
अब किसी की पीर की दिल में नदी बहती नहीं है.
भोग की गहरी घड़ी में, आत्मा भी सो गई है.
खोजना अब प्रीति आँखों में किसी के व्यर्थ होगा.
लौटकर आ ना सकेगी, दूर हमसे जो गईं है.
अब तड़पता दिल अंधेरे में यहाँ पर रोशनी का.
आह भर इन्सानियत भी आँसुओं से रो गई है.
हर हृदय पत्थर हुआ है चेतना सब सोे गई है .
लोग गर्दन काट कर भी ढूंढ़ते फिरते खुशी.
पाप की विषवेल लगता हर जगह पर बो गई है .
अब किसी की पीर की दिल में नदी बहती नहीं है.
भोग की गहरी घड़ी में, आत्मा भी सो गई है.
खोजना अब प्रीति आँखों में किसी के व्यर्थ होगा.
लौटकर आ ना सकेगी, दूर हमसे जो गईं है.
अब तड़पता दिल अंधेरे में यहाँ पर रोशनी का.
आह भर इन्सानियत भी आँसुओं से रो गई है.
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