Saturday, January 12, 2013

आया है विक्रम संवत खुशियों से इसे मनाय

आया है विक्रम संवत खुशियों से इसे मनायें
निज भाषा निज ज्ञान सर्मपित ज्योतित दिये जलाऐ
सृष्टि के उदगम की देखो घडी पुनः आयी है
मौसम भी खुशहाल हुआ है नव आभा छायी है
यह युगाब्द का द्योतक है प्यारा नववर्ष हमारा
बीत चुके पर्वों ने इसको गहरे हृदय पुकारा
चैत्र सुदी पड़वा से ज्यों-ज्यों मुखरित चाँद दिखेगा
जौ-गेंहूॅ की चमक बढ़ेगी सबका मन हरसेगा
और राम की नवमी पर फिर भारत झूम उठेगा
सियाराम की ध्वनि से सारा कण-कण झूम उठेगा
वहीं चले आयेंगे फिर बैसाख फसल के राजा
हर घर में चूल्हा सुलगेगा अन्न मिलेगा ताजा
नहीं कभी क्षय होने वाली अक्षय तीज मनेगी
सीता नवमी के व्रत से भी बिगड़ी बात बनेगी
ज्येष्ठ माह राणा प्रताप का जन्मदिवस लायेगा
वहीं दशहरा गंगा मैया की महिमा गायेगा
फिर अषाढ़ में सूर्य देव की महिमा का विधान है
गोवर्धन में मुड़िया पूनौं का मेला महान है
धरती मां की प्यास बुझाने को आयेगा सावन
रक्षा-धर्म सिखाने वाला लेकर रक्षाबन्धन
माह भाद्रपद कृष्णजन्म की धूम लिए आयेगा
रिमझिम मस्त फुहारों में कण-कण गीता गायेगा
माह आश्विन पाप विनाशक विजयादशमी लाये
शरद पूर्णिमा बाल्मीकि का जन्मदिवस बतलाये
कार्तिक माह लिए आता है रिश्तों की गहराई
करवा चैथ व्रतों ने कितनों की है उम्र बढ़ाई
दीप दिवाली के कोना-कोना जगमग करते हैं
घोर अमावस का तम मिट्टी के दीये हरते हैं
मार्गशीर्ष का माह रामजी का विवाह होता है
वहीं अष्टमी को दुर्गा शक्ति पूजन होता है
पौष माह में मालवीय जैसा अवतारी आया
स्वाभिमान, शिक्षा का जिसने घर-घर अलख जगाया
माघ मास में होता है माँ सरस्वती का पूजन
श्री गुरुजी का जन्मदिवस श्री रवीदास का अर्चन
इसी काल से पतझड़ जाता ऋतु बसंत आती है
हर टहनी पर कलियों खिलतीं शाखा इतराती है
पूर्ण वर्ष की कटुता हरने को आता है फागुन
पाप जलाकर होली में मन को करते हैं पावन
प्रेम भरे रंगों की सब पर ही फुहार होती है
शत्रुभाव मिटता है मन से नमस्कार होती है
आओं करें विचार विदेशी वर्ष हमें क्या देंगे
उल्टे-सीधे पर्व हमारी शुचिता को हर लेंगे
सोचो भगिनी-बन्धु स्वदेश वर्ष बड़ा पावन है
कितना भाव भरा है इसमें कितना मनभावन है
लें संकल्प विदेशी दर्शन को अब दूर भगायें
आया है विक्रम संवत खुशियों से इसे मनायें

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