Saturday, January 12, 2013

तू अंधेरी रात में अब चाँदनी की बात ना कर

तू अंधेरी रात में अब चाँदनी की बात ना कर,
यह शिकारी दौर है तू आदमी की बात ना कर.

उड़ रहे सब पंख खोले, आसमानी दौड़ में हैं.
चाहता जीना अगर तो, तू जमीं की बात ना कर.

हर तरफ रंगीनियां ही आँख में आती नजर हैं,
झांक उनमें देखले तू फिर नमी की बात ना कर.

वन्दनाऐं आज अच्छी कीमतों पर बिक रही हैं.
मोल अपना भी लगा, धन की कमी की बात ना कर.

संकुचित कुछ ताल भी तो गर्व से फूले हुए हैं.
दे उन्हें तू भी सलामी, पर नदी की बात ना कर.

कल दबाने को गला, कुछ हाथ भी तुझ तक बढ़ेंगे.
माँग फिर भी यह रहेगी, तू बदी की बात ना कर.

हर गली, हर मोड़ पर, अब मौत की चर्चा चलेगी.
मारना-मरना पड़ेगा, जिन्दगी की बात ना कर.

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