Saturday, January 12, 2013

शहरी विकास की माया

एक दिन कुछ लोग आपस में बतिया रहे थे।
कुछ गांव को तो कुछ शहर को अच्छा बता रहे थे।
अपने-अपने तर्कों से एक-दूसरे को दबा रहे थे।
गांव का पक्षधर फसल उत्पादन को शस्त्र के रूप में
लेकर चिल्लाया-
कि यदि खेती न हो तो भूखी मर जाये शहरी रियाया।
इस बात पर शहरी ने अपनी बाहों को खींचा, मुट्ठियों
को भींचा और बोला-कि शहर की फैक्ट्री न बनाये औजार
तो गांव की खेती हो जाये बेकार।
यह सब सुनकर मैंने कुछ आश्चर्य न जाना।
अपनी बुद्धि से गांव और शहर को
एक-दूसरे का पूरक माना।
फिर एक बार मैं एक बड़े शहर की ओर बढ़ा।
शहर जाने के लिये एक सुपरफास्ट बस में चढ़ा।
जैसे ही बस से उतरकर पैर नीचे जमाया।
कि तेज आवाज में एक आदमी चिल्लाया।
मैंने देखा कि-एक आदमी आगे-आगे एक
थैला लेकर भाग रहा है।
उसके पीछे थैले वाला लोगों से
उसे पकड़ने के लिये चिल्ला रहा है।
ऐसा लग रहा है कि जैसे किसी ने
कुछ सुना ही नहीं।
थैला लेकर चोर चम्पत हो गया था।
थैले वाला भारी मन हो रो गया था।
यह तो अभी पहला ही नजारा था।
मैं जहां था वह तो शहर का
पहला ही किनारा था।
मुझे अभी बस पकड़कर शहर के अन्दर
भी जाना था।
गांव का तो मैं था ही
अभी तो शहरी श्रेष्ठता को पाना था।
बस, अब अपनी गति से चली जा रही थी।
मैं भी उस घटना पर विचार कर रहा था।
कि ‘‘मारो-मारो’’ की आवाज के साथ
कुछ लोगों ने बस में ही एक आदमी को धुन डाला।
और उसे गेट पर लाकर मोटा आदमी बोला-
कि फैंक दो चलती गाड़ी से यह साला शराबी है।
मैं बड़ा चकित हुआ।
उस मोटू सहित अन्य लोगों की भी
भावहीनता पर द्रवित हुआ।
मैंने उन्हें रोका, और पूंछा-
क्या तुमने भी शराब पी रखी है।
तुम भी तो बड़े मक्कार हो।
जो एक शराबी को चलती गाड़ी से
फैंकने को तैयार हो।
कुछ भले लोगों ने शराबी को
ऊपर की ओर खींचा।
उस मोटू ने मेरी ओर देखते हुए
अपने दांतों को भींचा।
मेरा भी गंतव्य आ गया था।
मैं बस से उतरकर पैदल ही
रास्ते पर बढ़ रहा था।
शहरियों की हृदयहीनता पर
विचार कर रहा था।
तभी दूर एक महिला
अपने आंसुओं को बर्षा रही थी।
इशारे से चैन खींचने वाले
लुटेरे को दर्शा रही थी।
हजारों की संख्या में से
एक व्यक्ति का पुरुषत्व जागा।
और वह उस लुटेरे के पीछे भागा।
तभी मोटरबाइक पर सवार
एक पुलिसिया आया।
पीड़ित महिला ने उसे भी
अपना दर्द सुनाया।
उसने अपनी मोटरबाइक को
उसी दिशा में दौड़ाया।
और कुछ ही देर में
लुटेरे के पीछे गए व्यक्ति को
पीटता हुआ लाया।
यह सब दृश्य देखकर
मेरी समझ में आया-
कि यह ही शहरी विकास की माया।
जो जितना हृदयहीन और धन के
चक्कर में विक्षिप्त है,
वह उतना ही विकसित है।
इस सब से भले तो हमारे गाँव हैं
जहाँ कुछ भी न सही,
हर व्यक्ति के हृदय में
कुछ न कुछ सद्भाव हैं।

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