Saturday, January 12, 2013

महल बनाने की खातिर कुछ झौपड़ियों को ढा देना ह

पुष्पों ने उपवन से पूछा,
बूँदों ने सावन से पूछा.
छाया ने पूँछा वृृृक्षों से,
हमने भी अच्छे-अच्छोें से.
प्रश्न सरलसा किन्तु कठिन भी,
जीवन क्या है? जीवन क्या है?
उपवन बोला ज्ञान नहीं है,
फिर भी इतना जान गया हँू.
जी भर गन्ध लुटाते जाना,
और सदा जीना खुल कर के.
और समय पाकर मुरझाना
सावन बोला तपती भू पर.
बरसो सौंधी गन्ध उड़ाओ,
जीवन देना, अपना जीवन.
तृष्णा को तुम सदा वुझाओ,
वृक्षों ने समझाई छाया.
तुम तो हो मेरा ही साया,
मैं लकड़ी फल सभी लुटाता
मुझको कोई मोह न माया.
हमने बहुत खगाले सज्जन,
और टटोले संतों के मन.
तरह-तरह हमको भरमाया
आचरणों से उत्तर पाया
ऊपर कोई मोह न माया,
गहरे में निजता की खाई.
सत्य-अहिंसा धारण करके,
उस पर जमकर करो लुटाई.
धन से तन की चमक बढ़ाओ,
भाँति-भाँति से लूटो खाओ.
जीवन बंगला में गाड़ी में,
जीवन मल-मल की साड़ी में.
जीवन पद को पा लेना है,
महल बनाने की खातिर कुछ.
झौपड़ियों को ढा देना है.
घमासान सा सभी ओर है,
छोटा कोई बड़ा चोर है.
मानवता है सिसकी-सिसकी.
कब ले जायें अन्तिम हिचकी,
पशु मानव की तुलना से भी.
पशुओं का सम्मान गिरेगा.
ठुंठ कहा तो त्याग भरे ?
वृक्षों का भी अपमान बढ़ेगा.
जीवन का बदला पैमाना
मानवता का मोल न जाना.
पर पीड़ा की पीड़ा क्या हो,
दानवता का भरा गरल है.
जो खुद को मानव कहलाता हैं
उसे छोड़ प्रत्येक सरल है.

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